भगवान भोलेनाथ जी को रुद्राक्ष अत्यंत प्रिय है। रुद्राक्ष में भी एकमुखी रुद्राक्ष का अत्यधिक महत्व है। यह इतना प्रभावशाली होता है कि जिस व्यक्ति के पास एकमुखी रुद्राक्ष होता है उसे शिव के समान समस्त शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं। रुद्राक्ष एक अमूल्य मोती है जिसे धारण करके या जिसका उपयोग करके व्यक्ति अमोघ फलों को प्राप्त करता है। भगवान शिव का स्वरूप रुद्राक्ष जीवन को सार्थक कर देता है इसे अपनाकर सभी कल्याणमय जीवन को प्राप्त करते हैं।
भगवान शिव का आशीर्वाद
रुद्राक्ष का अर्थ है रूद्र का अक्ष अर्थात शिव के आंसू अर्थात रुद्राक्ष शिव स्वरूप ही है। रुद्राक्ष मानव के लिये अपने अंतर्मन में गहराईयों तक जाने का स्रोत है। इसे पृथ्वी व स्वर्ग के बीच का सेतु माना जाता है। भारत के प्राचीन ग्रंथों व पुराणों में रुद्राक्ष का वर्णन बखूबी मिलता है जैसे कि शिवमहापुराण, निर्णयसिंधु, लिंगपुराण, पद्मपुराण, मंत्रमहार्णव, महाकाल संहिता, रुद्राक्षजाबालोपनिषद, वृहज्जाबालोपनिषद् और सर्वोल्लासतंत्र में रुद्राक्ष के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। एक समय भारतवर्ष में रुद्राक्ष का बहुत प्रचलन था। सभी छोटे-बड़े व्यक्ति रुद्राक्ष की माला अवश्य पहनते थे। परंतु अंग्रेजों के आने के बाद रुद्राक्ष का महत्त्व कम हो गया क्योंकि अंग्रेज लोग रुद्राक्ष पहनने वाले लोगों को असभ्य व जंगली कहते थे। धीरे-धीरे लोग भी रुद्राक्ष के गुणों को भूल कर इसका प्रयोग कम करने लगे। रुद्राक्ष दरअसल भूरे रंग के दाने होते हैं जो कि रुद्राक्ष नामक फल के बीज होते हैं। यह फल रुद्राक्ष के पेड़ पर लगता है। जीव विज्ञान में रुद्राक्ष के पेड़ को 'उतरासम बीड ट्रीÓ कहा जाता है। इसके पत्ते हरे रंग के होते हैं। फल भूरे रंग का और स्वाद कसैला होता है। रुद्राक्ष वृक्ष अधिकतर इंडोनेशिया, नेपाल, भारत, जावा, सुमात्रा, बाली और ईरान, में पाये जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार लगभग 65 प्रतिशत रुद्राक्ष वृक्ष इंडोनेशिया में, 25 प्रतिशत नेपाल में और 5 प्रतिशत भारत में पाये जाते हैं। रुद्राक्ष के जन्म की कथा धार्मिक गं्रथ 'देवी भागवत पुराणÓ के अनुसार जब सभी देवता त्रिपुरासुर नामक राक्षस के अत्याचारों से दुखी हो गये तो वे मदद के लिये भगवान शिव के पास पंहुचे। शिव तो सभी की मदद के लिये अग्रसर रहते हैं तो उन्होने त्रिपुरासुर का वध करने के लिये रूद्र (क्रोध) का रूप धरा और उसका अंत किया। तत्पश्चात शिव कुछ समय के लिये अंर्तध्यान हो गये और जब उन्होने अपनी कमल समान आंखें खोली तो उनमें से कुछ आंसू धरती पर गिर गये। बाद में वे ही आंसू रुद्राक्ष के वृक्ष बन कर उभरे। रत्नों से भिन्न रुद्राक्ष शास्त्र कहते हैं कि कितने भी मुख वाला रुद्राक्ष पहना जा सकता है। ये रत्नों की तरह से हानि नहीं पंहुचाते क्योंकि रुद्राक्ष कभी भी ऋणात्मक ऊर्जा उत्सर्जित नहीं करते। रत्नों को तो किसी सुयोग्य ज्योतिषी से ही सलाह लेकर पहना जा सकता है क्योंकि गलत रत्न पहनने से लाभ की जगह हानि भी हो सकती है जबकि आमतौर पर रुद्राक्ष को कोई भी व्यक्ति कभी भी धारण कर सकता है। किसी भी रत्न की माला से रुद्राक्ष माला अधिक पवित्र, शुभ व शक्तिशाली होती है। रुद्राक्ष की कार्यप्रणाली प्रत्येक इंसान की अपनी अपनी 'ओराÓ (ऊर्जा क्षेत्र) होती है जो उसके शरीर के चारो ओर 2 से 4 इंच तक की परिधि में रहती है। यह इंसान की आत्मिक ऊर्जा को दर्शाती है। यह अपने अंदर इंद्रधनुष के सभी रंग समेटे होती है। यही ऊर्जा व रंग ही इंसान के स्वभाव, गरिमा, मानसिक स्थिति, भावनाओं, इच्छाओं आदि के बारे में संकेत देते हैं। यह ओरा अंगुठे की छाप की तरह होती है जो कि प्रत्येक इंसान की अपनी अलग होती है और यह बताती है कि इंसान अपने आप में पूर्ण रूप से क्या है। यह माना जाता है और अब तो सिद्ध भी हो गया है कि रुद्राक्ष की अपनी कुछ खास चुंबकीय और विद्युतीय तरंगें होती हैं। जब कोई व्यक्ति रुद्राक्ष को दिल के पास पहनता है तो उसमें से कुछ विशेष रश्मियां या किरणें निकलती हैं जिनकी गुणवत्ता रुद्राक्ष के मुखों के अनुसार होती हैं। ये किरणें ही उस व्यक्ति के दिमाग के तंतुओं और कोशिकाओं को प्रभावित कर उसकी ओरा को पवित्र और शुद्ध रखने में मदद करती हैं। मेडिकल सांइस में भी यह बात सिद्ध हो चुकी है कि रुद्राक्ष में ऐंटी ऐजिंग गुण होते है जो उसकी डायनेमिक पोलेरिटी के कारण होते हैं। इसी कारण रुद्राक्ष की हीलिंग शक्ति किसी भी चुंबक आदि से अधिक होती हैं। रुद्राक्ष को किसी धातु विशेष जैसे कि सोने, चांदी या कॉपर के साथ भी पहना जा सकता है जो कि रुद्राक्ष की चुंबकीय व विद्युतीय गुणों को और अधिक बढ़ा सकते हैं।
विभिन्न मुखी रुद्राक्ष के गुण
शास्त्रों में 1 से 32 मुखी तक के रुद्राक्ष की बात की गई है लेकिन ज्योतिषीय दृष्टि से 1 से 14 मुखी तक के रुद्राक्ष ही उपयोग में लाये जाते हैं। 32 मुखी तक के रुद्राक्ष आसानी से मिलते भी नहीं हैं। केवल 14 मुखी तक के रुद्राक्ष ही आसानी से मिल पाते हैं। कभी कभी 16 या 18 मुखी रुद्राक्ष भी उपलब्ध हो जाता है। लंकापति रावण द्वारा लिखे गये एक ग्रंथ में 108 मुखी तक के रुद्राक्ष होने की बात कही गयी है। परंतु यह ग्रंथ भी सुलभता से उपलब्ध नहीं है। प्राचीन पांडुलिपि 'रुद्राक्ष कल्पÓ में भी 108 मुखी रुद्राक्ष का वर्णन आता है। जन्मकुंडली देख कर ही यह निष्चय किया जाता है कि जातक को कितने मुखी रुद्राक्ष पहनना चाहिये।
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ReplyDeleteThe Gauri Shankar Rudraksha is truly a remarkable and sacred bead, symbolizing the divine union of Lord Shiva and Goddess Parvati. Wearing or worshiping this Gauri Shankar Rudraksha is believed to enhance harmony, balance, and unity in relationships, making it an excellent choice for those seeking spiritual growth and marital bliss. Its powerful energy not only fosters inner peace but also strengthens the bond between loved ones.
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